Monday, December 10, 2012

Sunderkand (Part 5)

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Sunderkand (Part 5)

दोहा
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग ।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ॥

चौ॰-प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कोसलपुर राजा ॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई । गोपद सिंधु अनल सितलाई ॥
गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही । राम कृपा करि चितवा जाही ॥
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना । पैठा नगर सुमिरि भगवाना ॥
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा । देखे जहँ तहँ अगनित जोधा ॥
गयउ दसानान मंदिर माहीं । अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं ॥
सयन किएँ देखा कपि तेही । मंदिर महुँ न दीखि बैदेही ॥
भवन एक पुनि दीख सुहावा । हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा ॥
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!♀!♥ - जय जय जय बजरंग बली - ♥!♀!

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